श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 9: मुक्ति  »  अध्याय 14: पुरुरवा का उर्वशी पर मोहित होना  »  श्लोक 48
 
 
श्लोक  9.14.48 
 
 
एक एव पुरा वेद: प्रणव: सर्ववाङ्‌मय: ।
देवो नारायणो नान्य एकोऽग्निर्वर्ण एव च ॥ ४८ ॥
 
अनुवाद
 
  सत्य-युग में, पहले युग में, सारे वैदिक मंत्र एक ही मंत्र प्रणव में शामिल थे जो सभी वैदिक मंत्रों का मूल है। दूसरे शब्दों में, अथर्ववेद ही समस्त वैदिक ज्ञान का स्रोत था। भगवान नारायण ही एकमात्र पूजनीय देवता थे और देवताओं की पूजा की सिफारिश नहीं की जाती थी। अग्नि केवल एक थी और मानव समाज में केवल एक वर्ण था जिसे हंस कहा जाता था।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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