श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 9: मुक्ति  »  अध्याय 14: पुरुरवा का उर्वशी पर मोहित होना  »  श्लोक 42
 
 
श्लोक  9.14.42 
 
 
गन्धर्वानुपधावेमांस्तुभ्यं दास्यन्ति मामिति ।
तस्य संस्तुवतस्तुष्टा अग्निस्थालीं ददुर्नृप ।
उर्वशीं मन्यमानस्तां सोऽबुध्यत चरन् वने ॥ ४२ ॥
 
अनुवाद
 
  उर्वशी बोली: हे राजन्, तुम गंधर्वों की शरण लो क्योंकि वे ही मुझे तुम्हें फिर से दे सकते हैं। इन वचनों के अनुरूप राजा ने गंधर्वों को स्तुतियों से प्रसन्न किया और प्रसन्न होने पर गंधर्वों ने उर्वशी के समान ही एक अग्निस्थाली कन्या उसे प्रदान की। यह मानकर कि यह कन्या उर्वशी ही है, राजा उसके साथ जंगल में भ्रमण करने लगा, किंतु बाद में उसकी समझ में आ गया कि वह उर्वशी नहीं बल्कि अग्निस्थाली है।
 
 
 
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