उर्वश्युवाच
मा मृथा: पुरुषोऽसि त्वं मा स्म त्वाद्युर्वृका इमे ।
क्वापि सख्यं न वै स्त्रीणां वृकाणां हृदयं यथा ॥ ३६ ॥
अनुवाद
उर्वशी ने कहा: हे राजन, तुम पुरुष हो, वीर हो। उतावलेपन में अपना जीवन मत त्याग दो। संयमित रहो और लोमड़ी की तरह अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण मत खो दो। तुम उनकी भेंट मत बनो। दूसरे शब्दों में, तुम्हें अपनी इंद्रियों के अधीन नहीं होना चाहिए। बल्कि, तुम्हें स्त्री के दिल को लोमड़ी की तरह समझना चाहिए। स्त्रियों से मित्रता करने का कोई फ़ायदा नहीं है।