श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 9: मुक्ति  »  अध्याय 14: पुरुरवा का उर्वशी पर मोहित होना  »  श्लोक 30
 
 
श्लोक  9.14.30 
 
 
इति वाक्सायकैर्बिद्ध: प्रतोत्त्रैरिव कुञ्जर: ।
निशि निस्त्रिंशमादाय विवस्त्रोऽभ्यद्रवद् रुषा ॥ ३० ॥
 
अनुवाद
 
  उर्वशी के कठोर शब्दों से आहत होकर पुरुरवा उसी प्रकार अत्यधिक क्रुद्ध हुआ जिस प्रकार हाथी महावत के अंकुश से होता है। वह बिना उचित वस्त्र पहने, हाथ में तलवार लेकर मेमना चुराने वाले गन्धर्वों का पीछा करने के लिए नंगा बाहर चला गया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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