तया स पुरुषश्रेष्ठो रमयन्त्या यथार्हत: ।
रेमे सुरविहारेषु कामं चैत्ररथादिषु ॥ २४ ॥
अनुवाद
शुकदेव गोस्वामी ने आगे कहा कि मनुष्यों में श्रेष्ठ पुरुरवा ने उर्वशी के साथ खुलेआम भोग-विलास करना शुरू कर दिया। दोनों कई दिव्य स्थलों पर काम-क्रीडा में व्यस्त रहने लगे। जैसे कि चैत्ररथ, नंदन कानन आदि। ये वो जगहें थीं जहां देवतागण भोग-विलास करते थे।