श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 9: मुक्ति  »  अध्याय 14: पुरुरवा का उर्वशी पर मोहित होना  »  श्लोक 24
 
 
श्लोक  9.14.24 
 
 
तया स पुरुषश्रेष्ठो रमयन्त्या यथार्हत: ।
रेमे सुरविहारेषु कामं चैत्ररथादिषु ॥ २४ ॥
 
अनुवाद
 
  शुकदेव गोस्वामी ने आगे कहा कि मनुष्यों में श्रेष्ठ पुरुरवा ने उर्वशी के साथ खुलेआम भोग-विलास करना शुरू कर दिया। दोनों कई दिव्य स्थलों पर काम-क्रीडा में व्यस्त रहने लगे। जैसे कि चैत्ररथ, नंदन कानन आदि। ये वो जगहें थीं जहां देवतागण भोग-विलास करते थे।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.