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श्लोक 52
श्लोक
9.10.52
वनानि नद्यो गिरयो वर्षाणि द्वीपसिन्धव: ।
सर्वे कामदुघा आसन् प्रजानां भरतर्षभ ॥ ५२ ॥
अनुवाद
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हे भरतश्रेष्ठ महाराज परीक्षित, श्री रघुनाथ जी के समय में सारे वन, नदियाँ, पर्वत राज्य, पृथ्वी के सातों द्वीप और सातों समुद्र समस्त प्राणियों का पोषण करने में समर्थ थे।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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