श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 9: मुक्ति  »  अध्याय 10: परम भगवान् रामचन्द्र की लीलाएँ  »  श्लोक 49
 
 
श्लोक  9.10.49 
 
 
एवं कृतशिर:स्‍नान: सुवासा: स्रग्व्यलङ्‍कृत: ।
स्वलङ्‍कृतै: सुवासोभिर्भ्रातृभिर्भार्यया बभौ ॥ ४९ ॥
 
अनुवाद
 
  प्रभु श्रीरामचंद्र ने विधिवत् स्नान कर अपने मस्तक को मुंडाया और तत्पश्चात बहुत सुंदर वस्त्र धारण किए। इसके साथ ही, उन्होंने एक माला और आभूषणों से स्वयं को सजाया। इस प्रकार, वे अपने भाइयों और अपनी पत्नी के साथ बेहद तेजस्वी नज़र आ रहे थे, जिन्होंने भी उनके समान वस्त्र और आभूषण धारण किए हुए थे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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