श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 9: मुक्ति  »  अध्याय 10: परम भगवान् रामचन्द्र की लीलाएँ  »  श्लोक 42-43
 
 
श्लोक  9.10.42-43 
 
 
पादुके भरतोऽगृह्णाच्चामरव्यजनोत्तमे ।
विभीषण: ससुग्रीव: श्वेतच्छत्रं मरुत्सुत: ॥ ४२ ॥
धनुर्निषङ्गाञ्छत्रुघ्न: सीता तीर्थकमण्डलुम् ।
अबिभ्रदङ्गद: खड्‍गं हैमं चर्मर्क्षराण्नृप ॥ ४३ ॥
 
अनुवाद
 
  हे राजन, भरतजी ने भगवान राम की खड़ाऊँ उठायी हुई थी, सुग्रीव और विभीषण ने चँवर और सुंदर पंखा पकड़ रखा था, हनुमान ने सफेद छत्र धारण कर रखा था, शत्रुघ्न ने धनुष और दो तरकस लिए हुए थे और सीताजी ने तीर्थस्थानों के जल से भरा पात्र पकड़ रखा था। अंगद ने तलवार थाम रखी थी और ऋक्षों के राजा जाम्बवान ने स्वर्ण की ढ़ाल उठा रखी थी।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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