श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 9: मुक्ति  »  अध्याय 10: परम भगवान् रामचन्द्र की लीलाएँ  »  श्लोक 15
 
 
श्लोक  9.10.15 
 
 
कामं प्रयाहि जहि विश्रवसोऽवमेहं
त्रैलोक्यरावणमवाप्नुहि वीर पत्नीम् ।
बध्नीहि सेतुमिह ते यशसो वितत्यै
गायन्ति दिग्विजयिनो यमुपेत्य भूपा: ॥ १५ ॥
 
अनुवाद
 
  हे प्रभु, आप इच्छानुसार मेरे जल का प्रयोग कर सकते हैं। निस्संदेह, आप इसे पार करके रावण के उस निवास तक पहुँच सकते हैं जो उपद्रवी है और तीनों लोकों को रुलाने वाला है। वह विश्रवा का पुत्र है, किन्तु मूत्र के समान तिरस्कृत है। कृपया जाकर उसका वध करें और अपनी पत्नी सीतादेवी को फिर से प्राप्त करें। हे महान वीर, यद्यपि मेरे जल के कारण आपको लंका जाने में कोई बाधा नहीं होगी, लेकिन आप इसके ऊपर एक पुल का निर्माण करके अपने दिव्य यश का प्रसार करें। आपके इस अद्भुत और असामान्य कार्य को देखकर भविष्य में सभी महान योद्धा और राजा आपकी महिमा का गान करेंगे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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