श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 9: मोहिनी-मूर्ति के रूप में भगवान् का अवतार  »  श्लोक 3
 
 
श्लोक  8.9.3 
 
 
का त्वं कञ्जपलाशाक्षि कुतो वा किं चिकीर्षसि ।
कस्यासि वद वामोरु मथ्नतीव मनांसि न: ॥ ३ ॥
 
अनुवाद
 
  हे अद्भुत रूपवती बालिका! तुम्हारी आँखें कमल के फूल की पंखुड़ियों जैसी इतनी मनमोहक हैं। तुम कौन हो? कहाँ से आई हो? यहाँ आने का तुम्हारा उद्देश्य क्या है और तुम किसकी हो? हे अद्वितीय सुंदर जाँघों वाली! तुम्हें देखते ही हमारे मन विचलित हो रहे हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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