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श्रीमद् भागवतम
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स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन
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अध्याय 9: मोहिनी-मूर्ति के रूप में भगवान् का अवतार
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श्लोक 27
श्लोक
8.9.27
पीतप्रायेऽमृते देवैर्भगवान् लोकभावन: ।
पश्यतामसुरेन्द्राणां स्वं रूपं जगृहे हरि: ॥ २७ ॥
अनुवाद
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भगवान तीनों लोकों के सर्वश्रेष्ठ मित्र और शुभचिन्तक हैं। जैसे, जब देवताओं ने अमृत पीना लगभग समाप्त ही कर लिया था, तब भगवान ने सभी असुरों की उपस्थिति में अपना वास्तविक रूप प्रकट कर दिया।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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