किंतु अमृत के स्पर्श से राहु का सिर अमर हो गया। इस प्रकार ब्रह्माजी ने राहु के सिर को एक ग्रह के रूप में स्वीकार कर लिया। चूँकि राहु सूर्य और चंद्रमा का शाश्वत शत्रु है, इसलिए वह हमेशा पूर्णिमा और अमावस्या की रातों में उन पर हमला करने की कोशिश करता है।