ते पालयन्त: समयमसुरा: स्वकृतं नृप ।
तूष्णीमासन्कृतस्नेहा: स्त्रीविवादजुगुप्सया ॥ २२ ॥
अनुवाद
हे राजन् ! जबसे असुरों ने यह बचन दिया था, कि स्त्री चाहे जो भी करे, चाहे वह उचित हो या अनुचित , हम स्वीकार करेंगे | इसलिए अब अपना वचन निभाने हेतु, सदबुद्धि दिखाने और स्त्री से हुए झगड़े से बचने के लिए वे मौन ही रहे।