श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 9: मोहिनी-मूर्ति के रूप में भगवान् का अवतार  »  श्लोक 21
 
 
श्लोक  8.9.21 
 
 
दैत्यान्गृहीतकलसो वञ्चयन्नुपसञ्चरै: ।
दूरस्थान् पाययामास जरामृत्युहरां सुधाम् ॥ २१ ॥
 
अनुवाद
 
  अमृत का कलश अपने हाथों में लेकर वह सर्वप्रथम असुरों के पास गई और अपनी मीठी बातों से उन्हें खुश करके उनके अमृत के हिस्से से उन्हें वंचित कर दिया। फिर उसने दूर बैठे हुए देवताओं को अमृत पिलाया ताकि वे बीमारी, बुढ़ापे और मौत से मुक्त हो सकें।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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