दैत्यान्गृहीतकलसो वञ्चयन्नुपसञ्चरै: ।
दूरस्थान् पाययामास जरामृत्युहरां सुधाम् ॥ २१ ॥
अनुवाद
अमृत का कलश अपने हाथों में लेकर वह सर्वप्रथम असुरों के पास गई और अपनी मीठी बातों से उन्हें खुश करके उनके अमृत के हिस्से से उन्हें वंचित कर दिया। फिर उसने दूर बैठे हुए देवताओं को अमृत पिलाया ताकि वे बीमारी, बुढ़ापे और मौत से मुक्त हो सकें।