श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 9: मोहिनी-मूर्ति के रूप में भगवान् का अवतार  »  श्लोक 2
 
 
श्लोक  8.9.2 
 
 
अहो रूपमहो धाम अहो अस्या नवं वय: ।
इति ते तामभिद्रुत्य पप्रच्छुर्जातहृच्छया: ॥ २ ॥
 
अनुवाद
 
  सुन्दरी स्त्री को देखकर असुरों ने कहा - ओह! इसका सौन्दर्य कितना आश्चर्यजनक है, इसके शरीर की कान्ति कितनी अद्भुत है और इसकी तरुणावस्था का सौन्दर्य कितना उत्कृष्ट है! इस प्रकार कहते हुए वे उसका भोग करने की काम वासना से पूरित होकर तेजी से उसके पास पहुँचे और उससे तरह-तरह के प्रश्न पूछने लगे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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