अहो रूपमहो धाम अहो अस्या नवं वय: ।
इति ते तामभिद्रुत्य पप्रच्छुर्जातहृच्छया: ॥ २ ॥
अनुवाद
सुन्दरी स्त्री को देखकर असुरों ने कहा - ओह! इसका सौन्दर्य कितना आश्चर्यजनक है, इसके शरीर की कान्ति कितनी अद्भुत है और इसकी तरुणावस्था का सौन्दर्य कितना उत्कृष्ट है! इस प्रकार कहते हुए वे उसका भोग करने की काम वासना से पूरित होकर तेजी से उसके पास पहुँचे और उससे तरह-तरह के प्रश्न पूछने लगे।