असुराणां सुधादानं सर्पाणामिव दुर्नयम् ।
मत्वा जातिनृशंसानां न तां व्यभजदच्युत: ॥ १९ ॥
अनुवाद
असुर स्वभाव से साँप की तरह टेढ़े होते हैं। इसलिए, उन्हें अमृत का हिस्सा देना बिल्कुल भी संभव नहीं था क्योंकि यह साँप को दूध पिलाने के समान खतरनाक होता। यह सोचकर, अच्युत भगवान् ने असुरों को अमृत में हिस्सा नहीं दिया।