श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 9: मोहिनी-मूर्ति के रूप में भगवान् का अवतार  »  श्लोक 18
 
 
श्लोक  8.9.18 
 
 
तां श्रीसखीं कनककुण्डलचारुकर्ण-
नासाकपोलवदनां परदेवताख्याम् ।
संवीक्ष्य सम्मुमुहुरुत्स्मितवीक्षणेन
देवासुरा विगलितस्तनपट्टिकान्ताम् ॥ १८ ॥
 
अनुवाद
 
  उसके आकर्षक नाक, गाल और सोने के कुंडल से सजे हुए कान उसके चेहरे को अति सुंदर बना रहे थे। जब वो चलती थी तो उसकी साड़ी का किनारा उसके स्तनों से हट रहा था। जब देवताओं और असुरों ने मोहिनी-मूर्ति के इन खूबसूरत अंगों को देखा तो वो पूरी तरह मोहित हो गए क्योंकि वह उन पर तिरछी नजर से देख रही थी और हल्की-हल्की मुस्कुरा रही थी।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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