इत्यभिव्याहृतं तस्या आकर्ण्यासुरपुङ्गवा: ।
अप्रमाणविदस्तस्यास्तत् तथेत्यन्वमंसत ॥ १३ ॥
अनुवाद
असुरों के सरदार बातों को समझने-बूझने में ज़्यादा होशियार नहीं थे। इसलिए मोहिनी मूर्ति की मीठी बातें सुनकर वे तुरंत मान गए। उन्होंने कहा "हाँ, आपने जो कहा है, वह बिल्कुल सही है।" इस तरह असुर उसका फैसला स्वीकार करने के लिए राज़ी हो गए।