श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 9: मोहिनी-मूर्ति के रूप में भगवान् का अवतार  »  श्लोक 12
 
 
श्लोक  8.9.12 
 
 
ततो गृहीत्वामृतभाजनं हरि-
र्बभाष ईषत्स्मितशोभया गिरा ।
यद्यभ्युपेतं क्‍व च साध्वसाधु वा
कृतं मया वो विभजे सुधामिमाम् ॥ १२ ॥
 
अनुवाद
 
  तत्पश्चात, भगवान विष्णु ने अमृतपात्र को अपने हाथ में लिया और थोड़ा मुस्कुराते हुए आकर्षक शब्दों में बोला, “मेरे प्रिय दैत्यो! मैं तुम लोगों में अमृत का वितरण कर सकती हूँ, लेकिन स्तिथि यह है कि तुम मेरे द्वारा किये जाने वाले किसी भी काम को, चाहे वह सही हो या गलत, स्वीकार करोगे।”
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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