श्रीशुक उवाच
इति ते क्ष्वेलितैस्तस्या आश्वस्तमनसोऽसुरा: ।
जहसुर्भावगम्भीरं ददुश्चामृतभाजनम् ॥ ११ ॥
अनुवाद
श्रीशुकदेव गोस्वामी ने आगे कहा : मोहिनी-मूर्ति के ठिठोलियों भरे शब्द सुनकर सभी असुर अत्यधिक आश्वस्त हो गए। उन्होंने मुस्कराहट के साथ हंसते हुए अंततः अमृत घट उनके हाथों में थमा दिया।