मथ्यमानेऽर्णवे सोऽद्रिरनाधारो ह्यपोऽविशत् ।
ध्रियमाणोऽपि बलिभिर्गौरवात् पाण्डुनन्दन ॥ ६ ॥
अनुवाद
हे पाण्डुपुत्र! जब क्षीरसागर में मन्दराचल को मथानी के समान उपयोग में लाया गया तो उस मन्दराचल का कोई आधार न होने के कारण बहुत से बलवान असुरों और देवताओं के हाथों से पकड़े जाने पर भी वह जल में डूबने लगा।