श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 7: शिवजी द्वारा विषपान से ब्रह्माण्ड की रक्षा  »  श्लोक 5
 
 
श्लोक  8.7.5 
 
 
कृतस्थानविभागास्त एवं कश्यपनन्दना: ।
ममन्थु: परमं यत्ता अमृतार्थं पयोनिधिम् ॥ ५ ॥
 
अनुवाद
 
  साँप को पकड़ने की विधि निश्चित कर लेने के पश्चात्, कश्यप के पुत्र अर्थात् देवता और असुर, दोनों ही क्षीरसागर का मंथन करने लगे। वे अमृत प्राप्त करने के लिए समुद्र को मंथन करना चाहते थे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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