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श्रीमद् भागवतम
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स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन
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अध्याय 7: शिवजी द्वारा विषपान से ब्रह्माण्ड की रक्षा
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श्लोक 46
श्लोक
8.7.46
प्रस्कन्नं पिबत: पाणेर्यत् किञ्चिज्जगृहु: स्म तत् ।
वृश्चिकाहिविषौषध्यो दन्दशूकाश्च येऽपरे ॥ ४६ ॥
अनुवाद
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जब भगवान शिव विषपान कर रहे थे, तब उनके हाथ से जो थोड़ा सा विष गिरकर छितरा गया था, उसे बिच्छू, साँप, विषैली औषधियाँ और अन्य जानवर जिनका दंश विषैला होता है, पी गए।
इस प्रकार श्रीमद् भागवतम के स्कन्ध आठ के अंतर्गत सातवाँ अध्याय समाप्त होता है ।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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