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श्रीमद् भागवतम
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स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन
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अध्याय 7: शिवजी द्वारा विषपान से ब्रह्माण्ड की रक्षा
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श्लोक 36
श्लोक
8.7.36
श्रीशुक उवाच
तद्वीक्ष्य व्यसनं तासां कृपया भृशपीडित: ।
सर्वभूतसुहृद् देव इदमाह सतीं प्रियाम् ॥ ३६ ॥
अनुवाद
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श्रील शुकदेव गोस्वामी ने आगे कहा: शिवजी सारे जीवों के प्रति सदैव दयालु हैं। जब उन्होंने देखा कि सारे जीव चारों ओर फैल रहे विष से बहुत परेशान हैं, तो वे बहुत दयालु हो गए। इसलिए उन्होंने अपनी सदाबहार संगिनी सती से इस प्रकार कहा।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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