श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 7: शिवजी द्वारा विषपान से ब्रह्माण्ड की रक्षा  »  श्लोक 34
 
 
श्लोक  8.7.34 
 
 
तत् तस्य ते सदसतो: परत: परस्य
नाञ्ज: स्वरूपगमने प्रभवन्ति भूम्न: ।
ब्रह्मादय: किमुत संस्तवने वयं तु
तत्सर्गसर्गविषया अपि शक्तिमात्रम् ॥ ३४ ॥
 
अनुवाद
 
  ब्रह्मा जी और दूसरे देवता जैसे प्राणी भी आपकी स्थिति को समझ नहीं सकते हैं क्योंकि आप चर-अचर सृष्टि से भी परे हैं। चूँकि आपको सही मायने में कोई नहीं समझ सकता, तो फिर कोई आपकी स्तुति कैसे कर सकता है? यह नामुमकिन है। जहाँ तक हमारी बात है, तो हम ब्रह्मा जी की सृष्टि के प्राणी हैं। ऐसे में हम आपकी ठीक से स्तुति नहीं कर सकते, पर जितनी हमारी समझ है, उतनी अपनी भावनाएँ प्रकट की हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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