कामाध्वरत्रिपुरकालगराद्यनेक-
भूतद्रुह: क्षपयत: स्तुतये न तत् ते ।
यस्त्वन्तकाल इदमात्मकृतं स्वनेत्र-
वह्निस्फुलिङ्गशिखया भसितं न वेद ॥ ३२ ॥
अनुवाद
जब आपकी आँखों से प्रकट शोलाओ और चिंगारियो से प्रलय होता है, तब सृष्टि का कोई भी कण अवशेषित नहीं रह जाता। फिर भी आपको इस बात का आभास नहीं होता कि यह कैसे होता है। तो, दक्ष-यज्ञ, त्रिपुरासुर और कालकूट विष का नाश आपके द्वारा कैसे किया गया, इस बारे में क्या कह सकते हैं? ऐसे कार्य तो आपकी आरती-स्तुति का विषय नहीं बन सकते।