श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 7: शिवजी द्वारा विषपान से ब्रह्माण्ड की रक्षा  »  श्लोक 31
 
 
श्लोक  8.7.31 
 
 
न ते गिरित्राखिललोकपाल-
विरिञ्चवैकुण्ठसुरेन्द्रगम्यम् ।
ज्योति: परं यत्र रजस्तमश्च
सत्त्वं न यद् ब्रह्म निरस्तभेदम् ॥ ३१ ॥
 
अनुवाद
 
  हे गिरीश! चूँकि निराकार ब्रह्म तेज सतो, रजो तथा तमो गुणों से परे है, इसलिए इस भौतिक जगत के विभिन्न लोकपाल न तो इसकी प्रशंसा कर सकते हैं और न ही यह जान सकते हैं कि वह कहाँ है। यह ब्रह्मा, विष्णु या स्वर्ग के राजा महेन्द्र द्वारा भी जाना जा सकने वाला नहीं है।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.