न ते गिरित्राखिललोकपाल-
विरिञ्चवैकुण्ठसुरेन्द्रगम्यम् ।
ज्योति: परं यत्र रजस्तमश्च
सत्त्वं न यद् ब्रह्म निरस्तभेदम् ॥ ३१ ॥
अनुवाद
हे गिरीश! चूँकि निराकार ब्रह्म तेज सतो, रजो तथा तमो गुणों से परे है, इसलिए इस भौतिक जगत के विभिन्न लोकपाल न तो इसकी प्रशंसा कर सकते हैं और न ही यह जान सकते हैं कि वह कहाँ है। यह ब्रह्मा, विष्णु या स्वर्ग के राजा महेन्द्र द्वारा भी जाना जा सकने वाला नहीं है।