श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 7: शिवजी द्वारा विषपान से ब्रह्माण्ड की रक्षा  »  श्लोक 30
 
 
श्लोक  8.7.30 
 
 
छाया त्वधर्मोर्मिषु यैर्विसर्गो
नेत्रत्रयं सत्त्वरजस्तमांसि ।
साङ्ख्यात्मन: शास्त्रकृतस्तवेक्षा
छन्दोमयो देव ऋषि: पुराण: ॥ ३० ॥
 
अनुवाद
 
  हे प्रभु! आपकी परछाई अधर्म में दिखती है, जहाँ से विभिन्न प्रकार की अधार्मिक सृष्टियाँ उत्पन्न होती हैं। प्रकृति के तीन गुण- सत, रज और तम- आपके तीन नेत्र हैं। सभी वैदिक साहित्य, जो छंदों से भरे हुए हैं, आपसे ही उत्पन्न हुए हैं क्योंकि उनके लेखकों ने आपकी कृपा दृष्टि प्राप्त करके ही विभिन्न शास्त्रों को लिखा है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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