मुखानि पञ्चोपनिषदस्तवेश
यैस्त्रिंशदष्टोत्तरमन्त्रवर्ग: ।
यत् तच्छिवाख्यं परमात्मतत्त्वं
देव स्वयंज्योतिरवस्थितिस्ते ॥ २९ ॥
अनुवाद
हे भगवान, आपके पाँच मुख पाँच महत्वपूर्ण वैदिक मंत्रों के प्रतीक हैं जिनसे अड़तीस महत्वपूर्ण वैदिक मंत्र उत्पन्न हुए हैं। आप शिव के नाम से विख्यात स्वयं प्रकाशित हैं। आप प्रत्यक्ष परम सत्य के रूप में परमात्मा नाम से स्थित हैं।