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श्रीमद् भागवतम
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स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन
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अध्याय 7: शिवजी द्वारा विषपान से ब्रह्माण्ड की रक्षा
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श्लोक 24
श्लोक
8.7.24
त्वं ब्रह्म परमं गुह्यं सदसद्भावभावनम् ।
नानाशक्तिभिराभातस्त्वमात्मा जगदीश्वर: ॥ २४ ॥
अनुवाद
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आप समस्त कारणों के जनक हैं, आत्म-प्रकाशित हैं, अचिन्त्य हैं, निराकार ब्रह्म हैं, जो मूलतः परब्रह्म हैं। आप इस दृश्य जगत में अपनी विविध शक्तियों को व्यक्त करते हैं।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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