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श्रीमद् भागवतम
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स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन
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अध्याय 7: शिवजी द्वारा विषपान से ब्रह्माण्ड की रक्षा
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श्लोक 2
श्लोक
8.7.2
हरि: पुरस्ताज्जगृहे पूर्वं देवास्ततोऽभवन् ॥ २ ॥
अनुवाद
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भगवान अजित जी ने सर्प के आगे के भाग को अपने हाथों में पकड़ लिया और उसके बाद सारे देवता उनके पीछे लगकर सर्प को पकड़ने लगे।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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