श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 7: शिवजी द्वारा विषपान से ब्रह्माण्ड की रक्षा  »  श्लोक 18
 
 
श्लोक  8.7.18 
 
 
निर्मथ्यमानादुदधेरभूद्विषं
महोल्बणं हालहलाह्वमग्रत: ।
सम्भ्रान्तमीनोन्मकराहिकच्छपात्
तिमिद्विपग्राहतिमिङ्गिलाकुलात् ॥ १८ ॥
 
अनुवाद
 
  मछलियाँ, हांगर, कछुवे तथा सर्प अत्यन्त विचलित एवं क्षुब्ध थे। सारा समुद्र उत्तेजित हो उठा और व्हेल, समुद्री हाथी, घडिय़ाल तथा तिमिङ्गिल मछली जैसे विशाल समुद्री जानवर सतह पर आ गये। जब इस प्रकार से समुद्र-मन्थन हो रहा था, तो इससे सर्वप्रथम एक भयावह और जहरीला पदार्थ निकला जिसे हलाहल के नाम से जाना जाता है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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