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स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन
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अध्याय 7: शिवजी द्वारा विषपान से ब्रह्माण्ड की रक्षा
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श्लोक 16
श्लोक
8.7.16
मथ्यमानात् तथा सिन्धोर्देवासुरवरूथपै: ।
यदा सुधा न जायेत निर्ममन्थाजित: स्वयम् ॥ १६ ॥
अनुवाद
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जब सर्वश्रेष्ठ देवता और राक्षसों के इतने सारे प्रयासों के बावजूद भी क्षीर सागर से अमृत नहीं निकला, तब स्वयं भगवान अजित ने समुद्र का मंथन शुरू कर दिया।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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