श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 7: शिवजी द्वारा विषपान से ब्रह्माण्ड की रक्षा  »  श्लोक 15
 
 
श्लोक  8.7.15 
 
 
देवांश्च तच्छ्‍वासशिखाहतप्रभान्
धूम्राम्बरस्रग्वरकञ्चुकाननान् ।
समभ्यवर्षन्भगवद्वशा घना
ववु: समुद्रोर्म्युपगूढवायव: ॥ १५ ॥
 
अनुवाद
 
  चूंकि वासुकि की दहकती साँसों से देवता भी प्रभावित हुए थे, तब उनकी कान्ति कम हो गई और उनके वस्त्र, मालाएँ, आयुध एवं उनके चेहरे धुएँ से काले पड़ गए। किन्तु भगवान की कृपा से समुद्र के ऊपर बादल प्रकट हो गए और वे मूसलाधार वर्षा करने लगे। समुद्री लहरों से जल के कण लेकर मन्द समीर बहने लगे जिससे देवताओं को राहत मिली।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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