अहीन्द्रसाहस्रकठोरदृङ्मुख-
श्वासाग्निधूमाहतवर्चसोऽसुरा: ।
पौलोमकालेयबलील्वलादयो
दवाग्निदग्धा: सरला इवाभवन् ॥ १४ ॥
अनुवाद
वासुक़ी के हज़ारों आँखें और मुँह थे। उसके मुँह से धुँआ और आग की लपटें निकल रही थीं जिससे पौलोम, कालेय, बलि, इल्वल आदि असुरगण परेशान हो रहे थे। इस तरह सभी असुर जो जंगल की आग से जले हुए सरल वृक्ष की तरह दिख रहे थे, धीरे-धीरे शक्तिहीन हो गए।