श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 7: शिवजी द्वारा विषपान से ब्रह्माण्ड की रक्षा  »  श्लोक 12
 
 
श्लोक  8.7.12 
 
 
उपर्यगेन्द्रं गिरिराडिवान्य
आक्रम्य हस्तेन सहस्रबाहु: ।
तस्थौ दिवि ब्रह्मभवेन्द्रमुख्यै-
रभिष्टुवद्भ‍ि: सुमनोऽभिवृष्ट: ॥ १२ ॥
 
अनुवाद
 
  मन्दर पर्वत की चोटी पर भगवान् ने हजारों भुजाओं के साथ अपने आपको प्रकट किया। वे विशाल पर्वत की तरह दिख रहे थे और एक हाथ से मन्दर पर्वत को थामे हुए थे। तब ऊपरी लोकों में भगवान् ब्रह्मा, भगवान् शिव, स्वर्ग के राजा इन्द्र और अन्य देवताओं ने भगवान् की स्तुति की और उन पर फूलों की वर्षा की।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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