श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 6: देवताओं तथा असुरों द्वारा सन्धि की घोषणा  »  श्लोक 3-7
 
 
श्लोक  8.6.3-7 
 
 
विरिञ्चो भगवान्‍द‍ृष्ट्वा सह शर्वेण तां तनुम् ।
स्वच्छां मरकतश्यामां कञ्जगर्भारुणेक्षणाम् ॥ ३ ॥
तप्तहेमावदातेन लसत्कौशेयवाससा ।
प्रसन्नचारुसर्वाङ्गीं सुमुखीं सुन्दरभ्रुवम् ॥ ४ ॥
महामणिकिरीटेन केयूराभ्यां च भूषिताम् ।
कर्णाभरणनिर्भातकपोलश्रीमुखाम्बुजाम् ॥ ५ ॥
काञ्चीकलापवलयहारनूपुरशोभिताम् ।
कौस्तुभाभरणां लक्ष्मीं बिभ्रतीं वनमालिनीम् ॥ ६ ॥
सुदर्शनादिभि: स्वास्त्रैर्मूर्तिमद्भ‍िरुपासिताम् ।
तुष्टाव देवप्रवर: सशर्व: पुरुषं परम् ।
सर्वामरगणै: साकं सर्वाङ्गैरवनिं गतै: ॥ ७ ॥
 
अनुवाद
 
  ब्रह्माजी ने शिवजी के साथ मिलकर भगवान् के निर्मल शारीरिक सौंदर्य को देखा, जिनका काला शरीर मरकत मणि की तरह है, जिनकी आँखें लाल कमल की तरह हैं, जो पिघले हुए सोने जैसे पीले वस्त्र पहने हुए हैं और जिनका पूरा शरीर आकर्षक ढंग से सजा हुआ है। उन्होंने उनके सुंदर मुस्कराते हुए कमल के समान चेहरे को देखा, जिस पर बहुमूल्य रत्नों से जड़ा मुकुट था। भगवान् की भौहें आकर्षक हैं और उनके गालों पर कान के कुंडल चमक रहे हैं। ब्रह्मा जी और शिवजी ने भगवान् की कमर में बंधी हुई पेटी, उनकी बाहों में पहने हुए कंगन, सीने पर पहना हुआ हार और पैरों में पहने हुए घुंघरू देखे। भगवान् फूलों की मालाओं से सजे हुए थे, उनकी गर्दन में कौस्तुभ मणि सुशोभित थी और उनके साथ लक्ष्मीजी थीं और वे चक्र, गदा आदि अपने निजी हथियार लिए हुए थे। जब ब्रह्मा जी ने शिवजी और अन्य देवताओं के साथ भगवान् के इस रूप को देखा तो सभी तुरंत भूमि पर गिर गए और उन्हें प्रणाम किया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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