श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 6: देवताओं तथा असुरों द्वारा सन्धि की घोषणा  »  श्लोक 25
 
 
श्लोक  8.6.25 
 
 
न भेतव्यं कालकूटाद् विषाज्जलधिसम्भवात् ।
लोभ: कार्यो न वो जातु रोष: कामस्तु वस्तुषु ॥ २५ ॥
 
अनुवाद
 
  क्षीरसागर से कालकूट नामक विष की उत्पत्ति होगी, लेकिन आपको उससे डरने की ज़रूरत नहीं है। जब समुद्र के मंथन से अलग-अलग चीजें निकलेंगी, तो आपको न तो उनको पाने के लिए लालच करना होगा, न ही उत्सुक होना होगा और न ही क्रोधित होना होगा।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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