श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 6: देवताओं तथा असुरों द्वारा सन्धि की घोषणा  »  श्लोक 22-23
 
 
श्लोक  8.6.22-23 
 
 
क्षिप्‍त्वा क्षीरोदधौ सर्वा वीरुत्तृणलतौषधी: ।
मन्थानं मन्दरं कृत्वा नेत्रं कृत्वा तु वासुकिम् ॥ २२ ॥
सहायेन मया देवा निर्मन्थध्वमतन्द्रिता: ।
क्लेशभाजो भविष्यन्ति दैत्या यूयं फलग्रहा: ॥ २३ ॥
 
अनुवाद
 
  हे देवताओं! क्षीरसागर में सभी प्रकार के पौधे, घास, बेलें और दवाओं को डाल दो। फिर, मेरी सहायता से मन्दरा पर्वत को मथनी के रूप में और वासुकी को मथने की रस्सी के रूप में बनाकर एकाग्र होकर क्षीरसागर का मंथन करो। इस प्रकार राक्षस श्रम के काम में लग जायेंगे, लेकिन तुम देवताओं को वास्तविक परिणाम मिलेगा, जो कि समुद्र से उत्पन्न होने वाला अमृत है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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