अरयोऽपि हि सन्धेया: सति कार्यार्थगौरवे ।
अहिमूषिकवद् देवा ह्यर्थस्य पदवीं गतै: ॥ २० ॥
अनुवाद
हे देवताओं! अपना हित इतना महत्वपूर्ण होता है कि मनुष्य को अपने शत्रुओं से सन्धिपत्र भी करना पड़ सकता है। अपने लाभ के लिए मनुष्य को सांप और चूहे के तर्क के अनुसार काम करना पड़ता है।