श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 6: देवताओं तथा असुरों द्वारा सन्धि की घोषणा  »  श्लोक 20
 
 
श्लोक  8.6.20 
 
 
अरयोऽपि हि सन्धेया: सति कार्यार्थगौरवे ।
अहिमूषिकवद् देवा ह्यर्थस्य पदवीं गतै: ॥ २० ॥
 
अनुवाद
 
  हे देवताओं! अपना हित इतना महत्वपूर्ण होता है कि मनुष्य को अपने शत्रुओं से सन्धिपत्र भी करना पड़ सकता है। अपने लाभ के लिए मनुष्य को सांप और चूहे के तर्क के अनुसार काम करना पड़ता है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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