अहं गिरित्रश्च सुरादयो ये
दक्षादयोऽग्नेरिव केतवस्ते ।
किं वा विदामेश पृथग्विभाता
विधत्स्व शं नो द्विजदेवमन्त्रम् ॥ १५ ॥
अनुवाद
मैं (ब्रह्मा), शिव और सारे देवताओं के साथ-साथ, दक्ष जैसे प्रजापति संपूर्ण चराचर के मूल अग्नि स्वरूप आपके द्वारा प्रकाशित चिनगारियाँ मात्र हैं। चूँकि हम आपके छोटे से कण हैं अतएव हम अपनी कुशलता के विषय में समझ ही क्या सकते हैं? हे परमेश्वर! हमें मोक्ष का वह साधन प्रदान करें जो ब्राह्मणों और देवताओं के लिए उपयुक्त हो।