श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 6: देवताओं तथा असुरों द्वारा सन्धि की घोषणा  »  श्लोक 15
 
 
श्लोक  8.6.15 
 
 
अहं गिरित्रश्च सुरादयो ये
दक्षादयोऽग्नेरिव केतवस्ते ।
किं वा विदामेश पृथग्विभाता
विधत्स्व शं नो द्विजदेवमन्त्रम् ॥ १५ ॥
 
अनुवाद
 
  मैं (ब्रह्मा), शिव और सारे देवताओं के साथ-साथ, दक्ष जैसे प्रजापति संपूर्ण चराचर के मूल अग्नि स्वरूप आपके द्वारा प्रकाशित चिनगारियाँ मात्र हैं। चूँकि हम आपके छोटे से कण हैं अतएव हम अपनी कुशलता के विषय में समझ ही क्या सकते हैं? हे परमेश्वर! हमें मोक्ष का वह साधन प्रदान करें जो ब्राह्मणों और देवताओं के लिए उपयुक्त हो।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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