श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 6: देवताओं तथा असुरों द्वारा सन्धि की घोषणा  »  श्लोक 13
 
 
श्लोक  8.6.13 
 
 
तं त्वां वयं नाथ समुज्जिहानं
सरोजनाभातिचिरेप्सितार्थम् ।
द‍ृष्ट्वा गता निर्वृतमद्य सर्वे
गजा दवार्ता इव गाङ्गमम्भ: ॥ १३ ॥
 
अनुवाद
 
  जैसे वन अग्नि से पीडित हाथी गंगाजल पाकर अत्यंत प्रसन्न होते हैं, उसी प्रकार हे कमलनाभ प्रभु! आप हमारे सामने प्रकट हुए हैं, इसलिए हम परमानंद का अनुभव कर रहे हैं। हम लंबे समय से आपके दर्शन की अभिलाषा कर रहे थे और अब आपका दर्शन पाकर हमने जीवन का परम लक्ष्य प्राप्त कर लिया है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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