श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 6: देवताओं तथा असुरों द्वारा सन्धि की घोषणा  »  श्लोक 10
 
 
श्लोक  8.6.10 
 
 
त्वय्यग्र आसीत् त्वयि मध्य आसीत्
त्वय्यन्त आसीदिदमात्मतन्त्रे ।
त्वमादिरन्तो जगतोऽस्य मध्यं
घटस्य मृत्स्‍नेव पर: परस्मात् ॥ १० ॥
 
अनुवाद
 
  श्री नारद जी कहते हैं - प्रभो! यह सम्पूर्ण दृश्य जगत आपसे ही प्रकट होता है, आप पर ही अवस्थित रहता है और आपमें ही विलीन हो जाता है। आप ही सभी वस्तुओं के आदि, मध्य तथा अंत हैं, जैसे पृथ्वी मिट्टी के पात्र का कारण बनती है, उसे आधार प्रदान करती है और अंततः, जब पात्र टूट जाता है, तो उसे अपने में समाहित कर लेती है।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.