श्रीशुक उवाच
एवं स्तुत: सुरगणैर्भगवान् हरिरीश्वर: ।
तेषामाविरभूद् राजन्सहस्रार्कोदयद्युति: ॥ १ ॥
अनुवाद
श्री शुकदेव गोस्वामी ने कहा: हे राजन परीक्षित! देवताओं एवं ब्रह्मा जी ने भगवान हरि की स्तुति की और वे उनके सामने प्रकट हुए। भगवान् हरि का शरीर तेज से चमक रहा था, ऐसा लग रहा था जैसे हजारों सूरज एक साथ उदय हो रहे हों।