श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 5: देवताओं द्वारा भगवान् से सुरक्षा याचना  »  श्लोक 47
 
 
श्लोक  8.5.47 
 
 
क्लेशभूर्यल्पसाराणि कर्माणि विफलानि वा ।
देहिनां विषयार्तानां न तथैवार्पितं त्वयि ॥ ४७ ॥
 
अनुवाद
 
  कर्मीजन अपनी इन्द्रिय सुखों की पूर्ति के लिए हमेशा धन इकट्ठा करने के लिए लालायित रहते हैं, लेकिन इसके लिए उन्हें बहुत कड़ी मेहनत करनी पड़ती है। इतनी कठोर मेहनत के बावजूद भी उन्हें संतोषजनक परिणाम नहीं मिलते। निस्संदेह, कभी-कभी तो उनके काम के नतीजों से निराशा ही हाथ लगती है। लेकिन जो भक्त अपने जीवन को ईश्वर की सेवा में समर्पित कर देते हैं, वे बहुत कड़ी मेहनत किए बिना ही पर्याप्त परिणाम प्राप्त कर सकते हैं। ये परिणाम भक्तों की अपेक्षाओं से भी बढ़कर होते हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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