श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 5: देवताओं द्वारा भगवान् से सुरक्षा याचना  »  श्लोक 44
 
 
श्लोक  8.5.44 
 
 
नमोऽस्तु तस्मा उपशान्तशक्तये
स्वाराज्यलाभप्रतिपूरितात्मने ।
गुणेषु मायारचितेषु वृत्तिभि-
र्न सज्जमानाय नभस्वदूतये ॥ ४४ ॥
 
अनुवाद
 
  हम उस सर्वोच्च ईश्वर को शिरोधार्य प्रणाम करते हैं, जो पूर्णतः मौन हैं, प्रयासों से मुक्त हैं और अपनी उपलब्धियों से पूर्ण रूप से संतुष्ट हैं । वे अपनी इंद्रियों द्वारा भौतिक जगत की गतिविधियों से आसक्त नहीं होते । निसंदेह, इस भौतिक जगत में अपने लीलाओं को संपन्न करते हुए वे अनासक्त वायु की तरह ही रहते हैं ।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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