हम उस सर्वोच्च ईश्वर को शिरोधार्य प्रणाम करते हैं, जो पूर्णतः मौन हैं, प्रयासों से मुक्त हैं और अपनी उपलब्धियों से पूर्ण रूप से संतुष्ट हैं । वे अपनी इंद्रियों द्वारा भौतिक जगत की गतिविधियों से आसक्त नहीं होते । निसंदेह, इस भौतिक जगत में अपने लीलाओं को संपन्न करते हुए वे अनासक्त वायु की तरह ही रहते हैं ।