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स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन
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अध्याय 5: देवताओं द्वारा भगवान् से सुरक्षा याचना
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श्लोक 42
श्लोक
8.5.42
लोभोऽधरात् प्रीतिरुपर्यभूद् द्युति-
र्नस्त: पशव्य: स्पर्शेन काम: ।
भ्रुवोर्यम: पक्ष्मभवस्तु काल:
प्रसीदतां न: स महाविभूति: ॥ ४२ ॥
अनुवाद
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लोभ उनके निचले ओठ से, प्रेम उनके ऊपरी ओठ से, काया की कान्ति उनकी नाक से, पशुओं वाली कामुक इच्छाएँ उनकी स्पर्श इंद्रियों से, यमराज उनकी भौंहों से और शाश्वत काल उनकी पलकों से उत्पन्न होता है। वे सर्वोच्च भगवान हम सब पर प्रसन्न हों।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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