अनुष्ठानों के समय आहुति स्वीकार करने वाली अग्नि भगवान् का मुँह है। समुद्र की गहराई में भी संपत्ति उत्पन्न करने के लिए अग्नि विद्यमान रहती है और पेट में भोजन पचाने और शरीर को बनाए रखने के लिए कई तरह के रस उत्पन्न करने के लिए भी अग्नि रहती है। ऐसे सर्वशक्तिमान भगवान् हम पर प्रसन्न हों।