श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 5: देवताओं द्वारा भगवान् से सुरक्षा याचना  »  श्लोक 32
 
 
श्लोक  8.5.32 
 
 
पादौ महीयं स्वकृतैव यस्य
चतुर्विधो यत्र हि भूतसर्ग: ।
स वै महापूरुष आत्मतन्त्र:
प्रसीदतां ब्रह्म महाविभूति: ॥ ३२ ॥
 
अनुवाद
 
  इस धरती पर चार तरह के जीव हैं, जिन्हें उन्होंने बनाया है। पदार्थों से बनी सृष्टि उनके चरणकमलों पर टिकी हुई है। वे महान परम पुरुष हैं और ऐश्वर्य और शक्ति से भरे हुए हैं। वे हम पर प्रसन्न रहें।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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