पादौ महीयं स्वकृतैव यस्य
चतुर्विधो यत्र हि भूतसर्ग: ।
स वै महापूरुष आत्मतन्त्र:
प्रसीदतां ब्रह्म महाविभूति: ॥ ३२ ॥
अनुवाद
इस धरती पर चार तरह के जीव हैं, जिन्हें उन्होंने बनाया है। पदार्थों से बनी सृष्टि उनके चरणकमलों पर टिकी हुई है। वे महान परम पुरुष हैं और ऐश्वर्य और शक्ति से भरे हुए हैं। वे हम पर प्रसन्न रहें।