श्रीमद् भागवतम  »  स्कन्ध 8: ब्रह्माण्डीय सृष्टि का निवर्तन  »  अध्याय 5: देवताओं द्वारा भगवान् से सुरक्षा याचना  »  श्लोक 26
 
 
श्लोक  8.5.26 
 
 
श्रीब्रह्मोवाच
अविक्रियं सत्यमनन्तमाद्यं
गुहाशयं निष्कलमप्रतर्क्यम् ।
मनोऽग्रयानं वचसानिरुक्तं
नमामहे देववरं वरेण्यम् ॥ २६ ॥
 
अनुवाद
 
  ब्रह्मजी ने कहा: हे परमेश्वर, हे अविकारी, असीम परम सत्य! आप प्रत्येक वस्तु के उद्गम हैं। आप सर्वव्यापी हैं, इसलिये आप प्रत्येक के हृदय में और परमाणु में भी हैं। आपमें कोई भौतिक गुण नहीं हैं। नि:संदेह, आप अचिन्त्य हैं। मन आपको कल्पना से ग्रहण नहीं कर सकता और शब्द आपका वर्णन करने में असमर्थ हैं। आप सभी के परम स्वामी हैं; अत: आप सभी के आराध्य हैं। हम आपको विनम्रतापूर्वक नमन करते हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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